Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज # दूसरा धृतराष्ट्र

आज ही सुमी को मां का फोन आया गांव से कुन्ती चाची की तबीयत बहुत खराब है।सुमी के पति ने उसे फटाफट ट्रेन मे तत्काल की टिकट करा कर बैठा दिया और ये कहा कि अगर टीटी कुछ कहे तो कुछ पैसे देकर अपना पीछा छुड़ा लेना।
सुमी ट्रेन मे बैठ कर गांव की ओर चल दी।शहर से गांव तकरीबन आठ नौ घंटे की दूरी पर था। गंगापुर पहुंचने मे अभी समय था इसलिए सुमी खिड़की से सिर लगा कर अपने ही ध्यान मे खो गयी।
कुन्ती चाची रमेश चाचा से दस साल छोटी थी । पढ़ी लिखी , सुघड़ और समझदार थी । बड़ों की इज्जत करना छोटों को प्यार करना सब तो आता था उन्हें सुमी से बामुश्किल आठ नो साल बड़ी थी जब ब्याह कर इस बड़े घर मे आयी थी दादा जी के रुतबे के आगे कुंती चाची का गरीब परिवार दब कर रह गया फिर मायके मे लड़कियां ही लड़कियां थी जिससे कुन्ती चाची के मायकेवालों ने बिना देखे भाले अपनी फूल सी बेटी को जन्म से धूर्त और शराबी आदमी के साथ ब्याह दिया । रमेश चाचा कितना भी कुछ कर आते गांव मे दादा जी हमेशा यही कहते ,"दिमाग थोड़ा है इसमे और अभी उम्र ही क्या है इसकी।"
दादा जी दूसरे धृतराष्ट्र बने रहते थे छोटे चाचा के विषय मे।पूरी अंधा पक्ष लेते थे।
तभी टीटी की आवाज से सुमी की तंद्रा भंग हुई।,"मैम टिकट?"
सुमी ने टीटी को एक तरफ ले जा कर पहले तो अपनी समस्या बताई पर वो नहीं माना तो पांच सौ का नोट हाथ पर रख दिया।वह चुपचाप चला गया।सुमी ने बैग से पानी की बोतल निकाली और दो घूंट पी कर वापस रख दी।गले से नीचे कुछ उतर ही नही रहा था ।कुंती चाची एकदम कलेजे पर आ गयी थी।वह फिर से ख्यालों मे खो गयी।
सुमी अपनी नयी चाची के पास हर रोज जाती थी। दोनो मे एक तरह का दोस्ताना हो गया था।
कुछ दिनों बाद सुमी को महसूस हुआ कुंती चाची कुछ गुमसुम सी रहने लगी थी।एक दिन कमर से पल्लू सरक गया तो सुमी ने देखा बड़े बड़े निशान पड़े थे चाची की पीठ पर।सुमी को अंदेशा तो था कि चाचा कुछ तो गलत कर रहे है चाची के साथ पर जब नीले निशान देखे तो आंखों मे आंसू आ गये सुमी के, गुस्से से लाल होकर बोली,"चाची तुम मे क्या कमी है जो तुम चाचा की मार खाती हो छोडकर चली क्यों नहीं जाती।"
इतना सुनते ही आंखों मे पानी भर कर बोली,"लाडो।ऐसा कभी होता है उस घर से विदा होकर इस घर आये है अब यहां चाहे दुःख है या सुख चार कंधों पर ही जाएंगे यहां से।"
सुमी चाची को एकटक देखती रह गयी कितनी गूढ़ता थी उनकी बातों मे।
सुमी की आगे की पढ़ाई थोड़ा मुश्किल थी इसलिए वह अब कम जाने लगी थी कुंती चाची के पास ।
दादा जी और चाचा चाची सुमी के घर से थोड़ी दूरी पर रहते थे।
एक दिन सुमी को स्कूल मे पता चला कि रमेश चाचा को "एड्स "हो गया हे ओर वो चाची को चरित्रहीन ठहरा कर घर से निकाल रहे है । बहुत बुरी तरह से पीट रहे है।
सुमी दौड़ी दौड़ी जब चाचा के यहां पहुंची तो चाचा जानवरों की तरह मार रहे थे चाची को और पीछे से दादा जी बार बार यही कह रहे थे,*निकाल इस चरित्रहीन को,इस कुलटा को घर से ।साली ने मेरे बेटे को ऐसी बीमारी लगा दी जो जान लेकर ही दम लेगी।"
चाचा बालों से घसीटकर चाची कै बाहर निकाल रहे थे घर से और चाची पैर पकड़े बैठी थी बस यही कह रही थी ,"मै चरित्रहीन नही हूं ।पूरा गांव मूक दर्शक बना खड़ा था।बस सुमी का ही मन चीत्कार कर रहा था कि नही चाची चरित्रहीन नही हो सकती है‌।
थोड़ी देर मे दादाजी को किसी ने कान मे कुछ कहा तो दादा जी झेंपते हुए बोले,"छोड़ दे इसे अब यही मरती रहे गी एक कोने मे।" यह कहकर वो अंदर आंगन मे आकर खाट पर बैठ गये।
सुमी क्रोध से आग बबूला हुई घर लौट आयी। मां ने दादा जी के विषय मे सुमी को समझाते हुए कहा,"तू क्यों मन फूंकती है वो सदा से ही बेटों के प्यार मे अंधे थे ,है और थहे गे।"
सुमी आगे की पढ़ाई करने शहर चली गयी । होस्टल मे रहती थी कभी कभार ही गांव जाना होता था एक दिन के लिए । इसलिए कुंती चाची से मिले बहुत समय हो गया था ।एक बार दो दिन की छुट्टी मे वो गांव गयी थी तो मन पक्का करके गयी थी कि चाची से मिलकर आयेगी ।वह जब कुंती चाची , कुंती चाची कहती हुई घर में घुसी तो क्या देखती एक खिली हुई कोमल कली समय से पहले बुढिया गयी थी।सुमी ने जाकर पूछा,"कैसी हो चाची?"
उत्तर मे बस चाची चाचा के विषय मे ही बताती रही उनकी ही चिंता करती रही ।सुमी बार बार यही सोच रही थी कि किस मिट्टी की बनी है वो इतना अपमान,इतना तिरस्कार।उस घर मे मिला फिर भी उनकी ही चिंता क्यों?
एक दिन कालेज मे सुमी को पता चला कि रमेश चाचा नही रहे।
पढ़ाई पूरी होने के बाद सुमी की भी शादी हो गयी।आज जब सुबह सुबह मां का फोन आया तो वो अपने अंदर उठनू वाले तूफान को रोक नही पायी और अपनी बाल सखी से मिलने चल दी उनके अंतिम क्षणों मे।
तभी किसी यात्री ने कहा कि गंगापुर आ गया।सुमी ने बैग उठाया ओर स्टेशन पर उतर गयी सामने पिताजी गाड़ी लेकर खड़े थे। वह चुपचाप गाड़ी मे बैठ गयी।तभी पिताजी बोले,"बड़ी अच्छी थी वो।"
सुमी एकदम से आंखों मे आंसू लाकर बोली,"थी....मतलब...
"हां कल रात तुम्हारी कुन्ती चाची सदा के लिए चली गयी ये संसार छोड़कर।"
सुमी की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे।घर पहुंच कर देखा कुंती चाचा आंगन के फर्श पर चिर निद्रा मे सोई है ।गांव पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये थे ।तभी सुमी चाची की लाश का माथा सहलाकर मन ही मध बोली,"लो चाची मिल गयी तुम्हें इस नरक से मुक्ति अब तुम चार कंधों पर ही जाना।
तभी सुमी के कानों मे दादाजी की आवाज आयी जो मर्दों के बीच बैठकर यही कह रहे थे,"बड़ी अच्छी थी बेचारी मुंह मे बोल ही नही था।इस बीमारी के कारण उस पर चरित्रहीन के दोष लगे पर बेकसूर हैते हुए भी चुपचाप सब सह गयी।
अब ये सब सुमी के बर्दाश्त के बाहर हो गया था वह तुरंत मर्दों के बीच बैठे दादा जी को बोली,"अब क्यों ये सब ।अब ये ढोंग क्यों दिखा रहे है आप कम से कम आप उन के जीते जी ही सब को ये बता सकते थे कि वो चरित्रहीन नही थी दोष आप ही के बेटे का था ताकि वो यह कलंक माथे पर लेकर तो नहीं मरती।दादा जी आप "दूसरे धृतराष्ट्र हो आप को अपने बेटे की गलती कभी दिखाई नही दी।"सुमी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया और वह एक पल भी वहां नही रुक पायी और चाची के चरणों मे नमन कर लौट आयी।

 

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8 Comments

shweta soni

01-Aug-2022 11:20 PM

बेहतरीन रचना 👌

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Gunjan Kamal

01-Aug-2022 06:10 PM

शानदार

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Seema Priyadarshini sahay

01-Aug-2022 04:57 PM

Nice post

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